यह एक अजीब वस्तुस्थिति है की किसी स्नातक युवा से बात करें तो वह कहेगा की कहीं कोई रोज़गार उपलब्ध नहीं है. इंजीनियरिंग कॉलेज में सीटें भर नहीं रहीं क्योंकि जॉब नहीं हैं. इंजिनियर चार से पांच हजार की नौकरियां कर रहे हैं, तकनीकी काम छोड़ के मार्केटिंग, फील्ड-वर्क इत्यादि कर रहे हैं, नर्सेंस को जॉब नहीं मिल रहा, व कहीं भी रिक्त पद निकलने पर दस स्थानों के लिए हजारों आवेदन व सैकड़ों सिफारिशें आती हैं. स्थिति वाकई विकट मालूम होती है.
पर उसी जगह किसी व्यवसायी से पूछो तो वह कहेगा की आजकल अच्छे कर्मचारी तो दूर, कोई कर्मचारी ही नहीं मिलते हैं. जो मिल जाएँ उनसे किसी तरह काम चलाना पड़ता है. अगर मिल जाएँ तो भी कब काम पर आना बंद कर दे कह नहीं सकते. किसी युवा को रखो तो कब तक टिकेगा, चाल-चलन कैसा है, इमानदारी है की नहीं – कोई भरोसा नहीं. मजे की बात है की हर व्यवसायी कहेगा की उसे सही कर्मचारी को अच्छा पैसा देने में कोई हर्ज नहीं है – पर कोई योग्यता तो साबित करे, भरोसा तो स्थापित करे. अंततः हो ये रहा है की कर्मचारी व नियोक्ता दोनों का एक दुसरे पे विश्वास नहीं है. नियोक्ता उतना ही पैसा देता है कि कर्मचारी भाग न जाए. और कर्मचारी भी उतना ही काम करता है की नियोक्ता उसे निकाल न दे – और इस प्रकार से एक निम्न स्तर का संतुलन बन जाता है, जहाँ कोई भी संतुष्ट नहीं है.
नित नए खुलते व्यवसायों से भरे इस उन्नत देश में इतने लोगों को काम न मिलना आश्चर्य की बात है भी, और नहीं भी. युवाओं को यह याद रखना होगा की डिग्री पा लेना या पढ़ाई पूरी कर लेना रोजगार मिलने की कोई गारंटी या हक नहीं है. कोई भी रोजगार या जॉब में आपके डिग्री या किताबी पढ़ाई का कोई स्थान नहीं होता. डिग्री तो सिर्क एक एंट्री-टिकट है. आपको जॉब मिलता है आपके हुनर के लिए, आपके उस कंपनी या नियोक्ता की समस्याओं का हल बनने के लिए व उनकी समस्याओं का हल निकालने के लिए. उसके लिए आपको विशिष्ट कार्य करना आना चाहिए, अपने हुनर से व अपने बल पर ग्राहक व जॉब को संतुष्ट करना आना चाहिए, व लगातार नयी चीज़ें सीखते हुए अपने आप को कंपनी व नियोक्ता हेतु अति महत्त्वपूर्ण मानव संसाधन बने रहने का सतत प्रयास व अभ्यास करते रहना चाहिए. ऐसे कर्मचारी को जॉब की कभी कमी नहीं रहेगी. अगर एक युवा चाहे तो वह एक ऐसा व्यक्ति बन सकता है जिसे जॉब ढूंढना नहीं पडेगा, वरन अलग-अलग जगह के जॉब उसे ढूंढते हुए आते रहेंगे.
पढ़ाई पूरी होने के बाद एक युवा को अपने पसंद के क्षेत्र में भले कुछ खर्च करके ही सही, या किसी कंपनी में बिना तनख्वाह ही सही – कुछ व्यवहारिक हुनर सीखना शुरू कर देना चाहिए.
उदाहरण के लिए एक नर्स जिसकी डिग्री हो गयी हो – किसी अस्पताल में नि:शुल्क ५-६ महीनों तक अस्पताल का क्लीनिकल व प्रबंधन संबंधी कार्य सीखना शुरू कर देना चाहिए. अथवा अगर एक कामर्स स्नातक [बी कॉम] है तो उसे अपने पसंद के किसी क्षेत्र की कंपनी में नि:शुल्क ५-६ महीने कार्य सीखने व विशिष्ट अकाउंटिंग सीखने की जुगत लगानी चाहिए. इसे इंटर्नशिप या अप्प्रेंटिसशिप भी कहते हैं. नि:शुल्क कार्य देने में कंपनी को भी कोई दिक्कत नहीं होगी. हो सकता है की उस युवा को वही कंपनी नियमित अच्छा जॉब पर नियुक्त कर ले. सालों बेरोजगार रह कर, कुछ नया नहीं सीखते हुए, सिर्फ कोई भी जॉब ढूंढते रहने से, व किस्मत व सरकार को दोष देते रहने से बेहतर है है की कुछ सीखते रहा जाए व अपना हुनर बढाते रहा जाए. कोई ऐसी रोजगारोन्मुखी, व्यवहारिक शिक्षा ली जाए – जो आपको किसी पद के लिए तैयार कर दे. जब आपके पास डिग्री व हुनर दोनों हो – तो आप बेरोजगार रह ही नहीं सकते.
पर अपने “अजेय भारत प्रकल्प” के तहत मैं अनेक ग्रामीण व शहरी युवाओं से मिलता हूँ, तो देखता हूँ की पढ़ाई होने के बाद लगभग हर युवा, कोई भी हुनर न होते हुए, सीधे मैनेजर लेवल की नौकरी के सपने देखता है, व उच्च तनख्वाह की चाहत रखता है. ऐसा जॉब उसे तुरंत कभी नहीं मिलेगा. अगर कोई छोटा-मोटा जॉब मिल भी जाए, तो मैंने देखा है कि वह युवा नया काम/हुनर न सीख के, अपने ज्ञान व कौशल को बढाने की जगह अपने खर्चे बढ़ा लेता है – उसे तो बस अब नया मोबाइल, नयी बाइक इत्यादि चाहिए. वह अब सिर्फ तनख्वाह पाने व व उसे बढाने की चाह रखता है क्योंकि हुनर तो नहीं बढ़ा – खर्चे ज़रूर बढ़ गए. ऐसे युवा को याद रखना होगा की साल भर होते ही कॉलेज उसके जूनियर भी जॉब की दौड़ में आ जायेंगे व उसी के जॉब को और भी कम तनख्वाह में करने को तैयार हो जायेंगे. अगर एक युवा अपने कार्यक्षेत्र में लगातार उन्नत कौशल व अधिक हुनरमंद नहीं बनते रहता है, तो अंततः उसे अगर जॉब मिल भी गया हो, तो वह टिकेगा नहीं.
कोई भी अच्छा कर्मचारी चाहे वह कितना भी जूनियर क्यों न हो – अपने नियोक्ता व कंपनी हेतु अनमोल संसाधन व धरोहर बन सकता है. एक विकासशील कर्मचारी संगठन की जान होता है. नियोक्ता को ऐसा व्यक्ति चाहिए जो –
[१] मेहनतकश, कार्य करने वाला व्यक्ति हो
[२] इमानदार हो, बगैर निरीक्षण के काम करे व भरोसेमंद चरित्र का हो
[3] उसका ध्यान व हुनर कंपनी व नियोक्ता की समस्याएं सुलझाने में हो
[४] जो लगातार नया कार्य/ज्ञान/कौशल लेते हुए अपने कार्यक्षेत्र का नेतृत्त्व करता रहे
उसमे लीडरशिप के गुण हों. ऐसा व्यक्ति का न केवल एक बेहतरीन कैरियर होगा बल्कि आर्थिक रूप से भी वह सम्पन्न होगा. उसकी कंपनी व नियोक्ता उस पर दिलो-जान न्योछावर करेंगे. और यह बात सिर्फ नौकरी पर ही लागू नहीं होती. ऐसे चरित्र का व्यक्ति अगर अपना स्वयं का व्यवसाय भी शुरू करना चाहे तो वह अंततः ज़रूर सफल होगा.

अंत में मैं अपने इस महान देश के ऊर्जावान परन्तु दिशाभ्रमित युवाओं से फिर से यही अपील करूंगा की पढ़ाई व डिग्री अवश्य लें – परन्तु यह जान लें की सफल रोजगार, कैरियर अथवा व्यवसाय हेतु जो अन्य रोजगारोन्मुखी गुणों व लीडरशिप के कौशल की आवश्यकता होती है, उन्हें विकसित करें – और तभी अच्छे जॉब, कैरियर व आर्थिक लाभ की अपेक्षा करें.